Friday, November 30, 2012

नसीहत: अब तो चेतना ही होगा।

नसीहत: अब तो चेतना ही होगा।: आम आदमी बीमारियों से हैरान है और नई-नई बीमारियो को देख और भुगत रहा है। जरा आप भी अपने आस-पास को देखे एक नए रोग की आहट समझ में आएगी। ये सभी ...

अब तो चेतना ही होगा।

आम आदमी बीमारियों से हैरान है और नई-नई बीमारियो को देख और भुगत रहा है। जरा आप भी अपने आस-पास को देखे एक नए रोग की आहट समझ में आएगी। ये सभी बीमारिया मिलावट की है। नित नए युवा  भी अब सुगर के चपेट में आ रहे है। आखिर इसके जड़ में भी जाना होगा अपने खान-पान की निगरानी करनी ही होगी। गुर्दे फेल हो रहे है। फेफड़े रक्त साफ करते-करते हाफ रहा है।

आखिर कितनी सफाई शरीर की करे ये भी मिलावट के जहर को ख़त्म करते करते काम करना ही बंद कर देते है या फिर अपने को सक्षम पाते है। ऐसी हालात में हमें ही सचेत होना पड़ेगा। आज हमारे पड़ोस में भी रहने वाला दुकानदार बड़े ही विश्वाश के साथ विश्वश्घात कर रहा है। सब कुछ जान कर भी हमें और हमारे विश्वाश का कुछ लाभ के लिए हत्या कर देता है।

हमें अपने जीवन के लिए ही सही अब तो कुछ सचेत होकर समाज से मिलावट के जहर को मितान ही होगा और चेतना होगा।

Tuesday, November 13, 2012

नसीहत: क्या धर्म यही सिखाता है ?

नसीहत: क्या धर्म यही सिखाता है ?: दीपावली को सुखमय बनाने और कुछ पाने की चाह में आम आदमी अमावश्या के अवसर पर चित्रकूट में जाने और दर्शन की होड़ लगाते है। तब जान तक की कोई परव...

क्या धर्म यही सिखाता है ?

दीपावली को सुखमय बनाने और कुछ पाने की चाह में आम आदमी अमावश्या के अवसर पर चित्रकूट में जाने और दर्शन की होड़ लगाते है। तब जान तक की कोई परवाह भी नहीं करता है। जैसा की घाटमपुर स्टेशन में ली गति एक फोटो बयान कर रही है। ये शासन और प्रशासन भी मूक हो गया लोग अपनी जान को जोखिम में डाल कर चित्रकूय का सफ़र भी कर आये। किसी ने कुछ नहीं भी कहा। भला धर्म कहा ये कहता है आप अपनी जान को जोखिम में डाले और दूसरो की भी यात्रा को दुखमय बनाए।

देखे जागरण कानपुर (घाटमपुर) में प्रकाशित व महेश जी के द्वारा ली गयी एक फोटो .......


अब तो कुछ आप भी कहे और सीख दे सभी को।

   




Monday, November 12, 2012

नसीहत: Burning garbage dump in India, why?

नसीहत: Burning garbage dump in India, why?: Today, every town will get mixed into the burning pile of garbage. How long does this law not only will continue playing with human life....

Burning garbage dump in India, why?



Today, every town will get mixed into the burning pile of garbage. How long does this law not only will continue playing with human life. Paradise constantly talking to the control laws do not to shame that after all? What is the cause?

I am living in small towns and never will leave early in the morning the place - a place to get a burning dumpster. And not even the authorities nor the media attention is. Why keep stealing eye and live Waters Holy of human life?

Never burn garbage and Kanpur in the big city is burning comes reports. However, government officials do not take advice. No need to explain the issue to be discussed. And governments do not understand something.

Today's post is needed to clean all these authorities and related training to employees. To tell them how to transport the garbage disposal and how it should be.



नसीहत: कूड़ा जलाने पर अब तो सरकार को कुछ करना ही चाहिए !

नसीहत: कूड़ा जलाने पर अब तो सरकार को कुछ करना ही चाहिए !: आज हर कस्बे में कूड़ा के ढेर जलाते हुए मिल जायेगे। आखिर कब तक इस तरह से कानून ही नहीं मानव जीवन से खिलवाड़ चलता रहेगे। लगातार प्रदिशन की नि...

कूड़ा जलाने पर अब तो सरकार को कुछ करना ही चाहिए !

आज हर कस्बे में कूड़ा के ढेर जलाते हुए मिल जायेगे। आखिर कब तक इस तरह से कानून ही नहीं मानव जीवन से खिलवाड़ चलता रहेगे। लगातार प्रदिशन की नियंत्रण की बाते करते हुए कानून बनाने वाले आखिर कतो नहीं करते शर्म ? कारन क्या है ?

मै एक छोटे से कसबे में रह रहा हूँ और कभी भी जल्दी सुबह निकालता हूँ तो जगह- जगह कूड़े के ढेर जलाते हुए मिल जाते है। कभी भी इस और ना तो मिडिया का ध्यान जाता है और न ही अधिकारिओ का। आखिर क्यों आँख चुराते रहते है और जलवाते रहते है मानव जीवन की होली ?

जब कभी कानपुर जैसे बड़े महानगर में भी कूड़ा जलने और जलाने की खबरे भी आती रहती है। फिर भी नसीहत नहीं ले पाते है सरकारी अधिकारी। जरुरत भी नहीं समझाते इस मुद्दे को लेकर चर्चा करने की। और सरकारे भी नहीं समझती है कुछ करने की।

आज जरुरत पद रही है की इन सभी अधिकारिओ और कर्मचारियो को सफाई से सम्बंधित प्रशिक्षण की। इन्हें बताया जाए किस प्रकार से कूड़े का परिवहन किया जाए और कैसे इसका निस्तारण किया जाए। 

Thursday, November 1, 2012

नसीहत: BBC- भारत में दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया

नसीहत: BBC- भारत में दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया: बीबीसी के अनुसार भारत में दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया बिना जानकारी और सहमति के भारत में गरीबों पर नई दवाओं के परीक्षण किए जाने का ...

नसीहत: BBC भारत: दवाओं के परीक्षण से दो साल में 1144 मौते...

नसीहत: BBC भारत: दवाओं के परीक्षण से दो साल में 1144 मौते...: BBC- HINDI के समाचार के अनुसार भारत: दवाओं के परीक्षण से दो साल में 1144 मौतें  बुधवार, 22 अगस्त, 2012 को 16:00 IST सरकारी आंक...

BBC- भारत में दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया

बीबीसी के अनुसार

भारत में दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया

बिना जानकारी और सहमति के भारत में गरीबों पर नई दवाओं के परीक्षण किए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. कंपनियों पर दबाव बढ़ रहा है कि वो उन मामलों में जल्द से जल्द जांच कराएं जिनमें मरीज़ों की मौत हो गई.
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के महाराज यशवंत राव अस्पताल में 2009 में अपनी सास चंद्रकला बाई का इलाज कराने पहुंची नीतू सोडी कहती हैं कि जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्हें यकीन नहीं हुआ.
वो कहती हैं, ''हम दलित हैं और आमतौर पर जब हम अस्पताल जाते हैं तो हमें पांच रुपए का एक वाउचर मिलता है, लेकिन डॉक्टर ने हमसे कहा वो हमें 125,000 रुपए की एक दवा देंगे.''
चंद्रकला बाई को कुछ समय से सीने में दर्द की शिकायत थी, जिसके चलते नीतू सोडी और उनके पति इलाज के लिए महाराज यशवंत राव अस्पताल पहुंचे थे.
अस्पतालों में मरीज़ों की लंबी लाइन और घंटो इतज़ार एक आम समस्या है लेकिन चंद्रकला बाई को हाथों-हाथ अस्पताल में भर्ती कर लिया गया था.

बिना स्वीकृति परीक्षण

नीतू कहती हैं कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि उनकी सास को दवाओं के परिक्षण के लिए भर्ती किया जा रहा है.
उन पर 'टोनापोफाइलिन' और 'बायोजेन आइडैक' नामक दवाओं का परीक्षण किया गया. नीतू और उनके पति दोनों ही पढ़-लिख नहीं सकते और जहां तक उन्हें याद है जिन दस्तावेज़ों पर उन्होंने हस्ताक्षर किए उनमें से कोई भी सहमति पत्र नहीं था.
"''हम दलित हैं और आमतौर पर जब हम अस्पताल जाते हैं तो हमें पांच रुपए का एक वाउचर मिलता है, लेकिन डॉक्टर ने हमसे कहा वो हमें 125,000 रुपए की एक दवा देंगे.'' "
नीतू सोडी, मरीज़ की परिजन
दवा लेने के कुछ समय बाद चंद्रकला बाई को हृदय संबंधी गड़बड़ियों ने घेर लिया और एक महीने के अंदर दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई.
'बायोजेन आइडैक' नामक कंपनी इस परीक्षण के लिए ब्रिटेन में पंजीकरण करा चुकी है और कंपनी का कहना है कि मरीज़ों में दिल के दौरे के बढ़ते मामलों को देखते हुए उन्होंने परीक्षण पर रोक लगा दी. चंद्रकला बाई की मौत के बारे में कंपनी को कोई जानकारी नहीं है.
लेकिन चंद्रकला बाई का मामला अकेला मामला नहीं है. एक दूसरी कंपनी के लिए किए गए ऐसे ही परीक्षण के बारे में बताते हुए नारायण सुरवैया कहते हैं कि उनसे और उनकी मां तीज़ूजा बाई से न यह पूछा गया कि वो दवाओं के परीक्षण में शामिल होना चाहते हैं या नहीं और न ही उन्हें बताया गया कि उन पर परीक्षण किया जा रहा है.
तीज़ूजा बाई अपने पैरों का इलाज कराने अस्पताल पहुंची थीं. उनसे कहा गया कि एक धर्मार्थ संस्था उनके इलाज का खर्च वहन करेगी. कुछ ही समय में तीज़ूजा बाई के दोनों पैरों को लकवा मार गया.

कब होगी जांच?

नारायण कहते हैं, ''मैंने डॉक्टरों से कहा कि दवा का असर खराब हो रहा है लेकिन उन्होंने कहा कि दवा चालू रखें और यह समस्या धीरे-धारे खत्म हो जाएगी.''
कुछ हफ्तों बात तीज़ूजा बाई की भी मौत हो गई.
महाराज यशवंत राव अस्पताल में अब तक कुल 53 लोगों पर परीक्षण किए जा चुके हैं. ये परीक्षण ब्रिटेन और जर्मनी की दवा कंपनियों की ओर से प्रायोजित थे. इनमें आठ लोगों की मौत हो गई.
इस बात का कोई सीधा सबूत नहीं कि मरीज़ों की मौत दवाओं के सेवन से हुई लेकिन इन मामलों में कोई चिकित्सीय जांच भी नहीं हुई जिससे आरोप साफ हो सकें.
जिन भी अस्पतालों में परीक्षणों के मामले सामने आए हैं उनमें मरने वालों के परिजनों को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया है.

ज्यादातर पीड़ित गरीब

"ये लोग केवल गरीबों को ही चुनते हैं. ऐसे लोग जो पढ़े-लिखे नहीं है और उन्हें इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं कि चिकित्सीय परीक्षण क्या होता है."
डॉक्टर आनंद राय
ज्यादातर पीड़ित परिवार बेहद गरीब हैं और उनसे मिलने पर एक ही बात उभर कर सामने आती है.
अस्पताल पहुंचने पर उन्हें हाथों-हाथ लिया गया और उन्हें ऐसी दवाएं देने की पेशकश की गई जो उनकी जेब से बाहर थीं. भारत में दवाओं के परीक्षण से जुड़े कानून का उल्लंघन करते हुए उनसे स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर भी नहीं कराए गए.
महाराज यशवंत राव अस्पताल के मरीज़ों का कहना है कि ये अवैध परीक्षण अस्पताल से जुड़े डॉक्टर अनिल बाहरानी की देखरेख में किए गए.
मामले सामने आने पर बाहरानी पर गैर कानूनी रुप से दवा कंपनियों से पैसे लेने, विदेश यात्राएं करने और मरीज़ों की बिना सहमति के उनपर दवाओं के परीक्षण करने का मामला चलाया जा रहा है.
डॉक्टर अनिल बाहरानी ने तमाम कोशिशों के बाद भी बीबीसी से बात करने से इनकार कर दिया. हालांकि हमारे उनके क्लिनिक पर पहुंचने के दो दिन बाद अस्पताल ने तुरत-फुरत उनका तबादला भी कर दिया.
इन परीक्षणों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले इसी अस्पताल के एक दूसरे डॉक्टर आनंद राय को न सिर्फ अस्पताल से निकाल दिया गया बल्कि उन्हें बेइज़्ज़त भी किया गया. तब से वो लगातार इन मामलों की जांच कर रहे हैं.
डॉक्टर आनंद कहते हैं, ''ये लोग केवल गरीबों को ही चुनते हैं. ऐसे लोग जो पढ़े-लिखे नहीं है और उन्हें इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं कि चिकित्सीय परीक्षण क्या होता है.''

परीक्षणों की मान्यता पर सवाल

"मैं इन कंपनियों से एक ही बात कहना चाहता हूं कि गरीबों पर ये परीक्षण न करें. हमारे पास खाने-कमाने को पहले ही कुछ नहीं. बीमारी हो जाए तो पूरा घर उसे भुगतता है. क्या वो ये परीक्षण अपने घरवालों पर करेंगे?"
रामधर श्रीवास्तव, दवा परीक्षण के पीड़ित
अस्पताल भी यह मानता है कि चिकित्सीय परीक्षणों को लेकर उनसे कुछ गड़बड़ियां हुई हैं. लेकिन ये कहानी सिर्फ भारत के एक अस्पताल की नहीं.
2005 में भारत सरकार ने दवा परीक्षणों से जुड़े कानूनों में ढील दी और इसके बाद कंपनियों में देश के अंग्रेज़ीदां डॉक्टरों और करोड़ों की संख्या में मौजूद गरीब, निरक्षर लोगों का फायदा उठाने की होड़ लग गई.
भोपाल गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाइड से मिले मुआवज़े के पैसों से बनाए गए भोपाल मेमोरियल अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले गैस पीड़ितों पर भी चिकित्सीय परीक्षण किए गए.
बिना किसी जानकारी के किए गए ऐसे ही एक परीक्षण का हिस्सा रहे रामधर श्रीवास्तव अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं.
वो कहते हैं, ''मैं इन कंपनियों से एक ही बात कहना चाहता हूं कि गरीबों पर ये परीक्षण न करें. हमारे पास खाने-कमाने को पहले ही कुछ नहीं. बीमारी हो जाए तो पूरा घर उसे भुगतता है. क्या वो ये परिक्षण अपने घरवालों पर करेंगे?''
जानकारों का मानना है कि ये मामला कानूनी और चिकित्सा क्षेत्र की बारीकियों से जुड़ा है. इस मामले पर संसद में पेश हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक नियंत्रण और निगरानी रखने वालों की कमी और लचर कानून दोनों इन हालात के लिए ज़िम्मेदार हैं.
लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि जिस तरह ये परीक्षण किए जा रहे हैं उससे इन दवाओं और उनके परिक्षणों की मान्यता और उत्कृष्टता पर भी सवाल खड़े हो 


BBC भारत: दवाओं के परीक्षण से दो साल में 1144 मौतें

BBC- HINDI के समाचार के अनुसार

भारत: दवाओं के परीक्षण से दो साल में 1144 मौतें

 बुधवार, 22 अगस्त, 2012 को 16:00 IST

सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 और 2011 में दवाइयों के परीक्षणों में मारे गए लोगों में 1106 लोग ऐसे थे जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के मरीज थे.
दरअसल बाजार में लाए जाने से पहले नई दवाइयों का मरीजों पर परीक्षण किया जाता है, ताकि इसके असरदायक होने या इससे होने वाले किसी प्रकार के संभावित दुष्प्रभावों का पता चल सके.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में अपने लिखित जवाब में बताया, “दवाओं के परीक्षण से गंभीर बीमारी से ग्रस्त वर्ष 2010 में 668 और 2011 में 438 लोगों की मौत हुई है.”

दवाओं का गलत प्रयोग

स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीजों की मौत की वजह दवाओं के गलत प्रभाव या इस्तेमाल हो सकता है.
"दवाओं के परीक्षण से गंभीर बीमारी से ग्रस्त वर्ष 2010 में 668 और 2011 में 438 लोगों की मौत हुई है."
गुलाम नबी आजाद
आजाद ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की स्थाई समिति ने अपने रिपोर्ट में सेंट्रल ड्रग्स स्टैडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के काम काज के तरीकों और दवाओं को स्वीकृति दिए जाने की प्रक्रिया में कई खामियां चिन्हित की.
पीटीआई के अनुसार आजाद ने कहा, “स्थाई समिति मीडिया में आई उन खबरों का भी अवलोकन किया है जो गरीबों पर दवाओं के परीक्षण के तौर-तरीको और इस प्रक्रिया में होने वाली मौतों के मामलों से संबंधित है.”
परीक्षण में शामिल होने वाले मरीजों की सुरक्षा के बारे में बोलते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “देश में दवाओं के परीक्षण के लिए प्रयोग किए जाने वाले लोगों की सुरक्षा से संबंधित कई मामले सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित हैं